Rape case: अभियुक्त (याचिकाकर्ता) की ओर से हाईकोर्ट में रेप पीडि़ता के सोशल मीडिया अकाउंट फेसबुक और इंस्टाग्राम की छानबीन की की गई थी मांग, जस्टिस ने कहा- यह निजता के अधिकार का उल्लंघन
बिलासपुर. रेप केस (Rape case) के एक मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बलात्कार पीडि़ता के सोशल मीडिया अकाउंट फेसबुक और इंस्टाग्राम प्रोफाइल की छानबीन की मांग को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ‘निजता के अधिकार’ के नजरिए से फैसला दिया। इस फैसले से हाईकोर्ट के जस्टिस ने पीडि़ता की निजता के उल्लंघन के आधार पर ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है। वहीं सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की पीठ ने भी इसे आधिकारिक तौर पर उचित ठहराया है।
हम आपको बता दें कि एक युवती से बलात्कार (Rape case) का मामला हाईकोर्ट में चल रहा है। इस केस में अभियुक्त (याचिकाकर्ता) के खिलाफ पीडि़ता द्वारा बलात्कार के आरोप लगाए गए हैं। इन आरोपों की प्रमाणिकता को सत्यापित करने पीडि़ता के सोशल मीडिया अकाउंट के छानबीन की मांग की गई थी।
इस पर हाईकोर्ट के जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की सिंगल बेंच ने याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने पीडि़ता के फेसबुक या इंस्टाग्राम अकाउंट तक पहुंचने और उसे देखने के निवेदन को खारिज कर उचित निर्णय दिया है।
Rape case: हाईकोर्ट ने ये कहा
हाईकोर्ट ने कहा कि यदि पीडि़ता(Rape case) के संबंधित फेसबुक या इंस्टाग्राम अकाउंट की जांच करने और ऑडियो रिकॉर्ड चलाने की अनुमति दी जाती है, तो पीडि़ता की निजता से समझौता हो सकता है। हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ‘निजता के अधिकार’ के नजरिए से इस मुद्दे पर फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की पीठ ने भी इसे आधिकारिक तौर पर उचित ठहराया है।
निजता एक ऐसा अधिकार, जिसका हर इंसान उठाता है आनंद
जस्टिस अरविंद वर्मा ने फैसले में कहा कि निजता का अधिकार एक मानव अधिकार है, जो कई अंतरराष्ट्रीय संधियों और संस्थानों में निहित है। उन्होंने कहा- निजता एक ऐसा अधिकार है, जिसका हर इंसान अपने अस्तित्व के आधार पर आनंद उठाता है। यह शारीरिक अखंडता, व्यक्तिगत स्वायत्तता, राज्य की निगरानी से सुरक्षा, गरिमा, गोपनीयता आदि जैसे अन्य पहलुओं तक विस्तारित हो सकता है।
निजता एक अवधारणा के रूप में नई नहीं है। निजता का अधिकार इन अधिकारों में से एक है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन के अधिकार को लचीले ढंग से परिभाषित किया गया है ताकि किसी व्यक्ति के अस्तित्व के सभी हिस्सों को कवर किया जा सके जो उसके जीवन को अधिक सार्थक बनाते हैं।
पीडि़ता ने इस बात से किया है इनकार
हाईकोर्ट ने कहा कि डिजिटल युग में डेटा एक मूल्यवान संसाधन है जिसे अनियंत्रित नहीं किया जाना चाहिए। इस मामले में पीडि़ता (Rape case) ने इस तथ्य से साफ इनकार किया है कि वह याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों के साथ रह रही थी, जो कि याचिकाकर्ता द्वारा ट्रायल कोर्ट में दायर की गई तस्वीरों से पता चलता है।

पीडि़ता (Rape case) ने आरोप लगाया है कि उसके फेसबुक या इंस्टाग्राम अकाउंट से उसकी तस्वीरें प्राप्त करने के बाद मॉर्फ (छेड़छाड़) किया गया है। न्यायालय का मानना था कि ट्रायल कोर्ट ने पीडि़ता के सोशल मीडिया हैंडल की जांच करने की याचिकाकर्ता की प्रार्थना को सही तरीके से खारिज किया है, क्योंकि इस तरह की पहुंच से उसकी निजता के अधिकार का उल्लंघन होने की संभावना है।