बस्तर संभाग के ग्रामीण आस्था के केन्द्रों पर हरियाली बिखेरने मुख्यमंत्री साय की बड़ी योजना, 7 जिलों में रोपे जाएंगे 5.62 लाख पौधे

On: Sunday, June 23, 2024 12:39 PM
1Bastar Zone Faith Center Hariyali Sapling Plantation, CM Vishnudev Say1
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रायपुर। जनजाति समुदाय एवं अन्य परम्परागत वन निवासियों का जल, जंगल और जमीन के साथ-साथ सेवी-अर्जी स्थलों पर अटूट आस्था रखते हैं। देव-माता गुड़ी स्थल के आसपास वृक्षों को देवता समतुल्य मान्यता है। इसी के तहत सीएम विष्णुदेव साय की बड़ी योजना है। बस्तर अंचल के आस्था केन्द्रों के आसपास हरियाली बिखेरी जाएगी। विशेष अभियान चलाकर आस्था केन्द्रों में पौधे लगाए जाएंगे।

योजना के तहत पौधा रोपण के इस मुहिम में जनजाति समुदायों को भी भागीदार बनाया जाएगा। बता दें कि गुड़ी स्थल पर स्थित पेड़ पौधों को बस्तर में संरक्षित रखने की परंपरा है। अभियान में बस्तर अंचल के 7055 देवगुड़ी-मातागुड़ी के आसपास पौधों को रोपा जाएगा। 3455 वन अधिकार मान्यता पत्र स्थलों में पौधारोपण किया जाएगा।

इन सभी क्षेत्रों का कुल रकबा 2607.200 हेक्टेयर है। देवगुड़ी और मातागुड़ी के अलावा प्राचीन स्मारक आदि स्थलों के आसपास भी वृक्षारोपण किया जाएगा। यहां फलदार, छायादार पौधे यथा नीम, आम, जामून, करजी, अमलताश के पौधों के साथ ही ग्रामवासियों के सुझाव अनुसार अन्य पौधे रोपे जाएंगे।

7 जिलों में 5.62 लाख पौधे रोपने के लिए बस्तर कमिश्नर द्वारा रणनीति तैयार की गई है। उन्होंने सातों जिलों में पौधारोपण के लिए जिला पंचायतों के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को नोडल अधिकारी बनाया गया है। यहां के अंचल में पौधारोपण के दिन ग्राम प्रमुख, बैगा, सिरहा, पेरमा, मांझी, चालकी, गुनिया, गायता, पुजारी, पटेल, बजनिया, अटपहरिया और जनप्रतिनिधियों को आमंत्रित किया जाए। वन विभाग के सहयोग से 15 जुलाई तक पौधे लगाने काम पूरा कराने का लक्ष्य है।

बता दें कि बस्तर संभाग में स्थापित आस्था एवं जीवित परम्पराओं के केंद्र मातागुड़ी, देवगुड़ी, गोटूल, प्राचीन मृतक स्मारक, सेवा-अर्जी स्थलों को संरक्षण एवं संवर्धन करने के लिए अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 की धारा 3(1) (5) के तहत् देवी-देवताओं के नाम से ग्राम सभा को 3455 सामुदायिक वनाधिकार पत्र प्रदान किये गये हैं। 3600 गैर वन क्षेत्र में स्थित देवगुड़ी, मातागुड़ी, प्राचीन मृतक स्मारक एवं गोटूल स्थल को राजस्व अभिलेख में प्रविष्टि की जा चुकी है।

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